रविवार, अक्टूबर 29, 2017

सिनेमा

तस्वीरें पढ़ें और नज़्में देखें


एक श्रेष्ठ फिल्म "दि आर्टिस्ट" के बहाने से लिखा गया यह आलेख 2012 में उत्तर प्रदेश से उस समय प्रकाशित होने वाले एक साप्ताहिक पत्र "नवजन्या" में प्रकाशित हुआ था।


The Artist poster. image source: Google

एक ज़माना था जब हम 'शेक्सपियरियन' अंग्रेज़ी से हैरान थे। जहां-तहां से किताबें खोजकर उसका अंग्रेज़ी अनुवाद तलाशते थे और फिर समझते थे। और एक ज़माना यह है जब 'इंटरनेटियन' अंग्रेज़ी ने घनचक्कर बना रखा है। तुर्रा यह है कि इसका कोई अनुवाद उपलब्ध नहीं है। ऐसे-ऐसे प्रयोग और शब्द हैं कि बरसों से अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ाने वाले प्रोफेसर भी चकरा जाएं। डूड, कूलिश, यप्पी... तो छोड़िए, यह समझिए - आय एम नॉट ओशो परसन या वी डोंट डू गोल्ड - इनका अर्थ समझते ही आपको वह सब स्कूली पढ़ाई बेकार लगने लगेगी जिसमें आपको व्याकरण के नाम पर न जाने क्या-क्या पढ़ाया जाता था। और, अब तो सारी अंग्रेज़ी भाषा स्टाइल के नाम पर प्रचलित हो रही है। उस ज़माने में हम दिग्गज लेखकों की भाषा की स्टाइल के बारे में पढ़ते थे और अब कमाल है! हर डूड भाषा के स्टाइल के मामले में तमाम दिग्गजों का बाप लगता है।

इसी सांस्कृतिक उलट-पुलट स्टाइलिश भाषा ने कई शब्द प्रचलित कर दिये हैं। अधिकतर तो न समझने लायक हैं लेकिन कुछेक हैं जो किसी प्रवृत्ति को इंगित करते दिखायी देते हैं। इन कुछेक शब्दों में से एक है 'मूवी'। कुछ ही अरसे पहले तक जिसे फिल्म या पिक्चर कहा जाता था, उसे मूवी कहा जाने लगा है। वैसे इस संकल्पना के लिए जिसे यहां फिल्म कहा जाएगा, के लिए और भी शब्द इस्तेमाल किये जाते रहे हैं, लेकिन मूवी से ही शुरू करते हैं। मूवी शब्द क्या अर्थ देता है: गतिशीलता। फिल्म शब्द के मायने क्या हैं: जब कैमरा ईजाद हुआ तो उसके जिस हिस्से से चित्र बनाने का काम हुआ, उसे फिल्म कहा गया। पिक्चर का मतलब तो सभी जानते हैं।

अब कुछ और संज्ञाओं की बात करते हैं। फिल्म के लिए शुरुआत में पिक्चर और फिर मोशन पिक्चर नाम का इस्तेमाल किया गया। मोशन पिक्चर यानी ऐसी तस्वीरें जिनमें गतिशीलता थी या चलती-फिरती तस्वीरें। इसी दौर के तुरंत बाद जब फिल्म मूक नहीं रही, उनमें आवाज़ भी आ गयी तो एक शब्द ईजाद हुआ 'टॉकी'। टॉकी का अर्थ हुआ बातचीत करने वाला/वाली। इसके बाद एक और शब्द जो काफ़ी प्रचलित रहा, वह था 'सिनेमा'। सिनेमा का अर्थ मूलतः वह स्थान है जहां फिल्म देखी/दिखायी जाती है। दूसरा अर्थ है फिल्म या फिल्म जगत से जुड़ा हुआ। हमारे सेंसर बोर्ड ने भी लंबे समय तक सेंसर प्रमाणपत्र पर फिल्मों के शीर्षकों के आगे इसी शब्द का प्रयोग किया।

इन सभी पर्यायवाची शब्दों पर अचानक चर्चा क्यों? वज्ह बिल्कुल है। इन सभी शब्दों के अर्थों के अनुसार कला की अभिव्यक्ति के एक माध्यम की प्रवृत्तियां जानी जा सकती हैं। शायद यह शोध दिलचस्प हो कि किस प्रवृत्ति के अनुसार कौन सी और कैसी फिल्में बनीं या बन रही हैं। यूं देखते हैं - आजकल जो फिल्में, खासकर हिंदी फिल्में बन रही हैं, इनमें ज़्यादातर किस श्रेणी में हैं? विज़ुअल इफेक्ट, कैमरे की तेज़ चालें, पल भर में ढेर सारी गतिविधियां परदे पर जब दिखती हैं, तो लगता है कि इसमें गतिशीलता ही प्रधान तत्व है। इसी प्रधान तत्व के आधार पर इसे मूवी कहना उचित है। लेकिन, क्या गतिशीलता ही फिल्म का प्रधान तत्व है? यह विचार करने लायक प्रश्न है।

एफटीआईआई में कुछ अरसे पहले हुए एक सम्मेलन में हिस्सा लेकर कई निेर्दशकों और फिल्मी कलाकारों को सुनने का मौक़ा मिला था। वहां गुलज़ार साहब की कही बात याद आ रही है - 
"फिल्में अपनी एक भाषा बना रही थीं, किसी भाषा की मोहताजी से परे जा रही थीं, लेकिन न जाने क्या हुआ कि यह काम नतीजे तक पहुंच नहीं पाया... वरना आज हम तस्वीरें सुन रहे होते और नज़्में देख रहे होते।"

अस्ल में, फिल्म का प्रधान तत्व यही ख़ूबसूरती है। गतिशीलता हो, लेकिन इतनी नहीं कि सोच, चित्रात्मकता का प्रभाव, ठहराव और दृश्यात्मकता का अतिक्रमण हो जाये। फिर, गतिशीलता कैमरे या चित्रों की नहीं, बल्कि कथानक की हो तो मायने रखती है। भाव-प्रवाह, विचार-प्रवाह और मन, उस गतिमान तस्वीर के साथ बहता चले, तो गतिशीलता है अन्यथा तो दौड़-भाग ही है। और, दौड़-भाग को गतिशीलता नहीं, दौड़-भाग ही कहते हैं। तो, इस हिसाब से, फिल्म या मोशन पिक्चर सटीक संज्ञाएं हैं, शेष बदलते वक़्तों और बदलते स्टाइलों के कारण से उपजे शब्द हैं।

उम्मीद है, कि इतने अलफ़ाज़ कहना ज़ाया नहीं हुआ होगा। और, अचानक इतने अलफ़ाज़ क्यों? इसकी वज्ह है बेहतरीन फिल्म 'दि आर्टिस्ट'। इस फिल्म को देखकर काफ़ी हद तक तस्वीरों को सुनने और नज़्मों को देखने का एहसास हुआ। फिल्मों की अपनी एक भाषा हो सकती है, यह भी साबित हुआ और बेहद कलात्मकता के साथ। इस फिल्म को ऑस्कर पुरस्कार मिल गये हैं, तो संभव है कि भाषा के बेमानी स्टाइल के चक्करों में फ़ितूरी अलफ़ाज़ ईजाद करने वाले नौजवान डूड भी इसे देखें। अगर देखें तो यह ज़रूर समझें कि ख़ामोशी और सधी हुई भाषा सब कुछ कहने में सक्षम है, अगर कुछ कह नहीं भी पाती, तो उसे कहा जाना ज़रूरी है भी नहीं।

एक पहलू और है कि मूक या अभाषी फिल्मों में शब्दों की कितनी अहमियत, कितना मतलब और कितना सम्मान है। और, बोलती फिल्मों ने शब्दों को कितना निरर्थक बना दिया है... इस पर बातचीत फिर कभी।

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