गुरुवार, अक्तूबर 26, 2017

एक फ़नक़ार

तोरू दत्त : भारत की जॉन कीट्स


साहित्य सागर पत्रिका के जून 2003 अंक में प्रकाशित यह लेख अंग्रेज़ी की भारतीय कवयित्री तोरू दत्त के जीवन और कृतित्व की संक्षिप्त झांकी प्रस्तुत करता है। वास्तव में तोरू का अवदान उल्लेखनीय रहा है और इसे समझने की ज़रूरत बनी हुई है।


एडमण्ड गूज़ ने उसकी किताब के बारे में टिपपणी करते हुए कहा है कि "समग्र उपलब्धि के रूप में यह किताब आश्चर्यचकित कर देती है"। उनका यह कथन नितांत उचित ही है।

Toru Dutt and the famous book cover. image source : Google


वास्तव में तोरू ने कम नहीं लिखा तथा श्रेयस्कर भी लिखा। उसकी लेखनी पर उसके जीवन का प्रभाव स्वतः स्पष्ट है। जिस तरह कोई पक्षी तालाब के जिस घाट पर होता है, वहीं के पानी से अपनी प्यास को शांत करता है। और प्यास को बुझा लेने के बाद सांझ होते अपने नीड़ को लौटने की चेष्टा करता है।

अब मात्र तीन ही साल बचे थे कि तोरू यूरोप, फ्रांस एवं कैम्ब्रिज में रहकर, पढ़-लिख कर वापस भारत आ गयी। अठारह वर्ष की आयु में उसका पहला निबन्ध सन् 1874 में बंगाल पत्रिका में प्रकाशित हुआ। तोरू ने फ्रेंच कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया और पुस्तक "ए शीफ ग्लेंड इन फ्रेंच फील्ड्स" के नाम से सन् 1876 में प्रकाशित हुई। इन 165 कविताओं में से 8 कविताओं का अनुवाद उसकी बड़ी बहन अरु ने किया था जिसकी मृत्यु सन् 1874 में हो चुकी थी। सी पॉल वर्गीज़ ने तोरू को दोनों भाषाओं में निपुण बताया। वहीं, एडमण्ड गूज़ ने भी इस किताब की अत्यधिक सराहना की। विंसेंट अरनॉल्ड की "द लीफ" कविता के अनुवाद में जहां तोरू ने भावनाओं और संवेगों को सार्थक और सरल रूप में अनूदित किया वहीं विक्टर ह्यूगो की कविता "द रोज़ ढंड द टूंब" भी एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

1877 में ज्वर, कफ़ आदि के प्रकोप के कारण तोरू का स्वास्थ्य तेज़ी से बिगड़ने लगा और 30 अगस्त 1877 को मात्र 21 वर्ष की आयु में कवयित्री अपने पीछे अपना अमूल्य साहित्यिक अवदान छोड़कर चली गयी। विभिन्न देशों, नगरों का भ्रमण, वहां शिक्षा, जीवन-यापन तथा बड़े भाई अब्जू और बड़ी बहन अरु की असामयिक मृत्यु को अपने छोटे से जीवन में देखना तोरू के स्पर्शी अनुभव थे। इन्हीं का प्रभाव उसकी कविताओं में दिखता है।

1882 में मेसर्स कीगन पॉल एंड कॉरपोरेशन, लंदन द्वारा "एन्शिएंट बैलेड्स एंड लीजेंड्स ऑफ हिन्दोस्तान" का प्रकाशन किया गया जिसकी भूमिका एडमण्ड गूज़ ने लिखी। अपने जीवन के अंतिम दिनों में तोरू ने संस्कृत का अध्ययन किया था तथा भारतीय संस्कृत साहित्य महाभारत, रामायण, विष्णु पुराण एवं श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ा था। अपने काव्य में तोरू ने भारतीय साहित्य के अमर चरित्रों का वर्णन किया। उपरोक्त संग्रह में तोरू के 9 बैलेड्स् हैं। 1) सावत्रिी 2) लक्ष्मण 3) जोगाध्याय उमा 4) द रॉयल ऐसेटिक एंड दि हिन्द 5) ध्रुव 6. बुत्तू (एकलव्य) 7) सिन्धु (श्रवण कुमार) 8) प्रहलाद और 9. सीता। इनके अतिरिक्त दो और वर्स विशेष उल्लेखनीय हैं - "दि लोटस" एवं "अवर कैज़ुरिआना ट्री"। इन बैलेड्स एवं वर्स ने तोरू दत्त को अमरता प्रदान कर दी है। इनमें तोरू की भारतीयता के संस्कार उद्घाटित होते हैं। अंग्रेज़ी आलोचकों ने माना है कि "अवर कैज़ुरिआना ट्री" अंग्रेज़ी साहित्य में किसी विदेशी द्वारा लिखी गयी सर्वाधिक उल्लेखनीय कविताओं में से एक है।

जीवन ने साथ नहीं दिया अन्यथा तोरू की योजना थी कि वह "ए शीफ ग्लीण्ड" को "संस्कृत फील्ड्स" के साथ संबद्ध करे। कलकत्ता में जन्मी इस 21 वर्षीया कवयित्री ने जो साहित्यिक उपलब्धियां अर्जित की हैं, जिन्हें विदेशी आलोचकों ने तहेदिल से सराहा है, उन पर हर भारतीय गर्व कर सकता है। साथ ही, अब तक हिन्दी में इन उत्कृष्ट कविताओं का न तो कोई प्रामाणिक अनुवाद ही किया गया है, न तोरू के अमूल्य अवदान को रेखांकित किया गया है। भाषा भले ही दूसरी हो, लेकिन तोरू की अनुभूति में भारतीयता के ऐसे चित्र हैं जो हिन्दी साहित्य में भी दुर्लभ हैं। तोरू की धरातलीय चेतना उसके साहित्य को भारतीय साहित्य की श्रेणी में खड़ा करती है, न कि हिन्दी या अंग्रेज़ी या अन्य साहित्य की।

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