मंगलवार, मार्च 07, 2017

नज़्म

वतन के वक़ील-ए-सफ़ाई..?


8 मार्च को 1921 में लुधियाना की सरज़मीं पर पैदा हुए थे अब्दुल हयी यानी साहिर लुधियानवी। अपने उथल-पुथल भरे बचपन, प्रेम प्रसंगों, मुल्क़ और दुनिया के तत्कालीन हालात और अपने मनोविज्ञान के आईने में साहिर जो शायरी कर गये, वह न केवल शायरी की हैसियत से बल्कि उस वक़्त के अवाम के दिल की तारीख़ की हैसियत से हमारी धरोहर है। साहिर की जयंती के मौक़े पर मैं हिमाक़त करता हूं अपनी एक नज़्म पेश करने की। अस्ल में यह नज़्म साहिर की ही है, जो इत्तफ़ाक़न मेरे वक़्त में, मेरी ज़ुबान से निकली है। आपको याद होगा "सनाख़्वाने-तक़दीस-मशरिक़ कहां हैं" साहिर की इसी नज़्म को तहे-दिल से समर्पित है ये नज़्म, बतौर ख़िराजे-अक़ीदत -

नज़्म - हिन्दोस्तां

महल ख़्वाब के ये किले ये हवाई
हक़ीक़त को गाली ये सच की बुराई
ये क्या ख़ुदशनासी है क्या ख़ुदनुमाई
कहां हैं वतन के वक़ीले-सफ़ाई...

ये अलगाव कैसे दिलों पर हैं काबिज़
दिमाग़ों में नासूर रूहें अपाहिज
कहां हैं ये हिन्दोस्तां के मुहाफ़िज़
ज़रा आके देखें ये मंज़र बलाई...

ये लीडर ये रहबर बयानों के कच्चे
बराबर के मुजरिम हैं कानों के कच्चे
ये मतलब से ग़ाफ़िल फ़सानों के कच्चे
ये लफ़्फ़ाज़ियां बेतरह लबकुशाई...

ज़मीनों के झगड़े ज़ुबानों के झगड़े
ये बंटवारे बेजा गुमानों के झगड़े
ये नादानियों में सयानों के झगड़े
ये क्यूं हर तरफ़ हो रही है लड़ाई...

ये हिन्दू मुसलमान के बीच रंजिश
ये मंदिर की साज़िश ये मस्जिद की साज़िश
ये इक-दूसरे को मिटाने की कोशिश
दिलों में ये बंदूक बम की बुआई...

ये तहज़ीबी जुमले ये तहरीक़ी हल्ले
ये भरते हैं ख़ाली इदारों के गल्ले
ये दौलत के भूखे हैं इज़्ज़त के दल्ले
ये बेनूर चेहरों पे इक बेहयाई...

ये लैलाएं मैली हैं दामन पे धब्बे
ये मजनूं फ़रेबी हैं सौ में से नब्बे
ये क़समों ये वादों के सड़ते मुरब्बे
ये ख़ुदगर्ज़ियां और हवस इन्तिहाई...

शरीफ़ों के बाज़ार ईमान सस्ते
ये उंची इमारत में इंसान सस्ते
ये इंसाफ़ महंगे हैं मीज़ान सस्ते
ये सस्ती कहानी ये सस्ती रुबाई...

ये पेड़ों की और बेज़ुबानों की हत्या
ये पानी पे हमले ये दानों की हत्या
ये मिट्टी के जाये किसानों की हत्या
ये बेवाएं रोती बिलखती हैं माई...

ये मरने ही आते हैं जंगल से गीदड़
बिछाते हैं चौपड़ मचाते हैं भगदड़
ये ख़ूंख़ार बीमार गन्दे हैं लीचड़
ये क्यूं इतनी हावी है ताक़त पराई...

बहुत मोहतरम और मुअजि़्ज़म हैं सूअर
ये भेड़ों की बस्ती है हाक़िम हैं सूअर
ये छलिये हैं कपटी हैं ज़ालिम सूअर
निभाते हैं सुअरों से कुत्ते वफ़ाई...

कई भेड़िये हैं ये भेड़ों में मक्कार
ये कुछ गिद्ध हैं जो चलाते हैं बाज़ार
ये कुछ सांप हैं जो चलाते हैं अख़बार
है किस बदनिजामी की ज़ोर आज़माई...

ये सब दाग़ धब्बे हैं हिन्दोस्तां पर
ये इल्ज़ाम लगते हैं हिन्दोस्तां पर
ये फांसी के खतरे हैं हिन्दोस्तां पर
अदालत में जारी है ये कार्रवाई...

अब आएं वतन के वक़ीले-सफ़ाई
करें कुछ जिरह दें दलीलें दुहाई
ये तस्वीर झूठी है हिन्दोस्तां की
ये साबित करें और बताएं सचाई
कहां हैं वतन के वक़ीले-सफ़ाई
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं?

- दिलशाद

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