शनिवार, मार्च 28, 2020

सिनेमा

BEYOND THE CLOUDS : माजिद मजीदी का यादगार क्राफ्ट


'बियॉण्ड द क्लाउड्स' ग्लोबल सिनेमा है क्योंकि यह मुंबई के एक वर्ग विशेष की कहानी है जिसे हिंदी, तमिल और अंग्रेज़ी भाषाओं के ज़रिये कई प्रांतों व देशों के कलाकारों के साथ एक ईरानी फिल्मकार के नज़रिये से परदे पर उतारा गया है.


Still From The Movie Beyond The Clouds. (Image Source: Firstpost.Com)

पहले दृश्य में एक पुल यानी फ्लाईओवर है, जिस पर महंगे और चमचमाते चार पहिया वाहन दौड़ रहे हैं. इसी हल्के शोर में फ्लाईओवर के आसपास महानगर की चकाचौंध के नज़ारे हैं. फ्लाईओवर के एक किनारे एक गाड़ी रुकती है और एक युवक बाहर निकलकर फ्लाईओवर की दूसरी तरफ से सीढ़ियां उतरता है. कैमरा अब फ्लाईओवर के नीचे धीरे धीरे उतरता है और इस संपन्नता के नीचे दिखती है दूसरी दुनिया, जो ग़रीबी, अभाव और त्रासदी भोग रही है. बियॉण्ड द क्लाउड्स यहां से शुरू होती है, जहां विकास का अर्थ फ्लाईओवर बनाकर नीचे की समस्या को छुपा देना भर है.

काफी समय के बाद ऐसी फिल्म दिखी है जो कई परतों और पहलुओं को अपने भीतर समेटे हुए है. तो अब हाल यह है कि "कहां से छेड़ूं फसाना कहां तमाम करूं". किस सिरे से बात शुरू की जाये और किस सिरे पर खत्म? और ऐसी फिल्मों पर बात शुरू करने में एक जोखिम यह भी है कि "बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी". बहरहाल, मायने समझते हैं ऐसी फिल्म के, जिसे आज नहीं तो कल वर्ल्ड क्लासिक्स में शामिल किया ही जाएगा.

बियॉण्ड द क्लाउड्स ग्लोबल सिनेमा है क्योंकि यह मुंबई के एक वर्ग विशेष की कहानी है जिसे हिंदी, तमिल और अंग्रेज़ी भाषाओं के ज़रिये कई प्रांतों व देशों के कलाकारों के साथ एक ईरानी फिल्मकार के नज़रिये से परदे पर उतारा गया है. एक कलाकार और कलाकृति की सफलता इसमें भी है कि वह क्रूर सच्चाइयों को कितने असरदार ढंग से दर्शकों को सौंप सकता है. इस पैमाने पर बेशक यह फिल्म, इस फिल्म के कलाकार और फिल्मकार माजिद मजीदी पूरी तरह कामयाब हुए हैं.

बियॉण्ड द क्लाउड्स, इस फिल्म के शीर्षक में सिम्बॉलिज़्म इतना ज़बरदस्त है कि सोचते ही यह खूबसूरत लगने लगता है. फिल्म में बारिश, चांद और होली के रंगों को मैटाफर यानी रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया गया है जो डायरेक्टर की मैच्योरिटी दर्शाता है. जीवन के अनेक और अद्भुत रंगों की झांकी बन जाती है यह फिल्म जिसमें प्रेम, नफ़रत, गुस्सा, विनम्रता, बदले की भावना, परोपकार और पाप व पुण्य जैसी विरोधाभासी भावनाएं अपने जीवन्त रूप में उतरती हैं. बियॉण्ड द क्लाउड्स वह सिनेमा है जिसकी ज़रूरत है और रहेगी.

चिल्ड्रन ऑफ हेवन के लिए माजिद मजीदी चर्चित एवं प्रशंसित रहे हैं. बियॉण्ड द क्लाउड्स एक स्तर पर, मजीदी की इसी फिल्म का विस्तार या एक और डायमेंशन कही जा सकती है. बियॉण्ड द क्लाउड्स की कहानी के किरदार देखकर दर्शक समझते हैं कि ये भी "चिल्ड्रन ऑफ हेवन" हैं बस हैं "हैल यानी जहन्नुम" में. हो सकता है कि कुछ लोग कहें कि बाहर के कलाकारों को भारत में नकारात्मकता ही दिखती है या वे भारत के बदहाल और वीभत्स रूप को ही उकेरते हैं. लेकिन देखा जाये तो यह कहानी दुनिया के बहुत से हिस्सों की हो सकती है, कम से कम जो विकासशील या तीसरी दुनिया के हिस्से हैं, उनकी तो यकीनन. खुद मजीदी भी यह बात स्वीकार चुके हैं.

Another Still From The Movie Beyond The Clouds. (Image : IMDB.Com)

माजिद मजीदी का सिनेमा वास्तव में वह सिनेमा है जो जीवन की सच्चाइयों की कहानी कहता है और झूठा आदर्शवाद नहीं गढ़ता. भावनाओं और एहसासों की ज़मीन पर वहां तक सफ़र करता है, जहां तक मुमकिन है. इस सिनेमा की परिपक्वता और सफलता इसी में है कि यह धर्म, भाषा, सीमा और नस्ल जैसे तमाम भेदों के परे मानवीयता का पैरोकार है और सेन्सेशनल न होते हुए सेन्सिबल है. मसलन, बियॉण्ड द क्लाउड्स की कहानी पर अगर बॉलीवुड की कोई कमर्शियल फिल्म बनती तो वह एक्शन, थ्रिलर और सनसनीखेज़ हो सकती थी.

बियॉण्ड द क्लाउड्स.. यह शीर्षक बार-बार कहता है कि इसे खोला जाये. ये कौन से बादल हैं जिनका ज़िक्र करना ज़रूरी है? अस्ल में, इस फिल्म को कई तरह से समझा जा सकता है. सामाजिक एवं राजनीतिक सिरे से इसे देखा जाये तो इस शीर्षक में क्लाउड्स का अर्थ मुमकिन है पाखंड या दिखावा. विकास, समाजवाद और इस तरह के तमाम नारों का जो दिखावा है, उसके परे एक और दुनिया है. यानी भारत में कई भारत हैं, एक दुनिया में कई दुनियाएं हैं. नारे बादलों की तरह छाये हुए हैं लेकिन उसके पीछे एक और सच है और यही है बियॉण्ड द क्लाउड्स.

मानवीय भावनाओं और साइकोलॉजी के सिरे से इस फिल्म को समझा जाये तो हमारे मन और चेतना पर भी कई किस्म के बादल छाये हुए हैं. इन बादलों के पीछे है इंसानियत. धीरे-धीरे ये बादल छंटते हैं और एक इंसानी मन नज़र आता है. तो यह है बियॉण्ड द क्लाउड्स. मजीदी का कारनामा यही है कि वह बादलों के छंटने की प्रक्रिया को बारीकी से समझते और दर्शाते हैं. इस पूरे सिलसिले में एक तुलना भी की जा सकती है, स्लमडॉग मिलेनियर के साथ इस फिल्म की. स्लमडॉग में ये सब कुछ है लेकिन थोड़ी थोड़ी कसर के साथ. भावनाओं का विस्तार पूरी मानवता के स्तर तक नहीं हो पाता. निजी राय में, मजीदी की यह फिल्म डैनी बॉयल की फिल्म से आगे निकल जाती है.

आलोचना का भी एक पहलू है. मजीदी का सिनेमा बेशक कामयाब और सार्थक है लेकिन उनको चाहने वाले दर्शक उनसे कुछ और की उम्मीद भी करते हैं. होता यह है कि हर फिल्मकार के मन की एक केंद्रीय धुरी होती है. वह उसी पर घूमता हुआ दुनिया देखता है. लेकिन महान कलाकार केंद्रीय धुरी और केंद्रीय भाव का अंतर समझते हैं. एक भाव, विचार या संवेदना पर ही नहीं टिकते. मजीदी खुद सत्यजीत रे जैसे महान फिल्मकारों से प्रभावित रहे हैं तो भविष्य में उनसे यह उम्मीद की जा सकती है कि वह खुद को और शिद्दत से एक्सप्लोर करेंगे और कुछ और नायाब फिल्में सौंपेंगे.

फिल्म के बाकी पहलुओं पर एक ओवरव्यू कुछ ऐसा है कि सभी अभिनेता नैचुरल और प्रतिभावान हैं. विशेष रूप से मालविका मोहनन ने बाज़ी मार ली है. सिनेमटोग्राफर अनिल मेहता ने कैमरे से करिश्मा किया है. एआर रहमान का संगीत उनके स्तर के अनुरूप प्रभावी नहीं है. विशाल भारद्वाज के हिंदी संवादों में फ्लो है और विषय व किरदारों के लिहाज़ से सटीक हैं. कहानी कहने-सुनने लायक है और पटकथा लगभग मैच्योर है. मजीदी के निर्देशन में बियॉण्ड द क्लाउड्स एक यादगार क्राफ्ट है. इसके ज़रिये वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में सम्मान के साथ हमेशा याद किये जाएंगे.

(यह समीक्षा न्यूज़18 हिंदी के लिए लिखी गयी थी, जो वेबसाइट पर 22 एप्रिल 2018 को प्रकाशित हुई थी. hindi.news18.com से साभार इस लेख में एक अंश और यहां जोड़ा गया है.)

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