मंगलवार, दिसंबर 12, 2017

चिट्ठी

दिल दे चुके हैं आपको, और क्या दें दिलीप साहब..?


सालगिरह के मौक़े पर लिविंग लीजेंड फ़नक़ार दिलीप कुमार के नाम एक दीवाने का ख़त


दिलीप साहब,
आदाब, सादर चरण स्पर्श

कहां से छेड़ूं फ़साना, कहां तमाम करूं... आपको ख़त लिखने बैठा हूं तो यही पसोपेश है। आपको याद होगा कि एक मशहूर इंटरव्यू में आपने यह शेर बतौर अपनी गायकी का सबूत अदा किया था। जबसे आपकी आवाज़ में तरन्नुम में सुना है ये शेर, कई जगह कोट करता रहा हूं। कुछ तो इस शेर की ख़ूबी है लेकिन मुझे यह अज़ीज़ इसलिए हुआ कि मैंने आपसे, आपकी आवाज़ में सुना जब आपसे गाने की फ़रमाइश की गयी। कोई और एक्टर होता तो शायद अपनी फिल्म का अपने पर ही फिल्माया हुआ कोई गाना गा देता लेकिन आप दिलीप साहब हैं। आपकी बात और है, आपका अंदाज़ और है। मैं जानता हूं कि आप शायरी के चाहने वालों में रहे हैं और माशा अल्लाह ख़ुद भी एक शायर रहे हैं। लेकिन, हमारी बदक़िस्मती रही कि एक शायर के तौर पर हम आपको उस तरह समझ नहीं सके जिस तरह दरकार था। आप उर्दू, हिन्दी और अंग्रेज़ी बोलने, बरतने में जो महारत रखते हैं, वो एक जादू जैसा असर करने वाला ज़ाविया रहा है मेरे लिए। कितने कम कलाकार हैं, फिल्म इंडस्ट्री में, जो इस तरह बात कर सकते हैं। उनमें आप सिर्फ़ एक ही हैं।

Dilip Kumar's roles. image source: Google

मुग़ले-आज़म की बात करना चाहता हूं। एक ऐसी फिल्म जो बचपन से अब तक सौ से ज़्यादा बार देखी है, कैसेट में सुनी है और रेडियो पर भी। कह सकता हूं कि ज़बानी याद है। आपकी एक-एक अदा, आवाज़ का उतार-चढ़ाव, आंखें, भ्ज्ञंगिमाएं और चाल सब कुछ हर बार मुझे किसी तिलिस्म में बांधता रहा है। अपनी शायरी में कुछेक दफ़्अ इस फिल्म के हवाले महफ़ूज़ कर सका हूं लेकिन भरोसा है कि अभी और कई बार करूंगा। अक्सर सोचा कि आपका कोई समकालीन इस क़िरदार को इतनी ख़ूबी से निभा ही नहीं सकता था। यही क्या, आपके निभाये लगभग सभी क़िरदारों में किसी और का तसव्वुर ही मुमकिन नहीं हो पाता। गंगा जमुना, दीदार, दाग़, अमर, देवदास, संघर्ष कितने ही क़िरदार हैं जो आपने अमर कर दिये। मैं शर्तिया कह सकता हूं कि ये क़िरदार किसी और अदाकार ने अदा किये होते तो इतने पुरख़ुलूस और पुरअसर ढंग से यादों में नहीं रह पाते।

आपकी रेंज का क़ायल रहा हूं। ट्रैजडी किंग का ख़िताब हासिल कर लेने के बाद आपने कॉमेडी की तो कमाल किया, सलीम और देवदास से एक दीवाने आशिक़ की इमेज पायी तो सगीना महतो जैसा जनवादी और यथार्थपरक क़िरदार ऐसे जिया जिसका सानी नहीं, दाग़ का शराबी, दीदार का नेत्रहीन और अमर का एक मनोरोगी आपने जिस परिपक्वता और दूरदर्शिता के साथ प्ले किये, उसकी दाद कला को समझने वाला हर शख़्स देगा। आने वाले तमाम कलाकारों के लिए एक बड़ा पैमाना तो बनाया ही, आपने एक गाइडलाइन भी दी कि ऐसे निभाये जाते हैं ऐसे रोल। इसकी एक बड़ी और सच्ची मिसाल तो यही है कि देवदास आपसे पहले से आज तक दर्जनों अदाकार निभा चुके लेकिन देवदास की असली पहचान का नाम दिलीप कुमार ही है।

मुझे हमेशा लगता रहा है कि आपके समकालीन रहे हों, पूर्ववर्ती या परवर्ती, आपसे बेहतर अभिनेता हिंदी फिल्म जगत तो क्या भारतीय फिल्म जगत ने नहीं देखा। कहना नहीं चाहिए लेकिन मेरे एहसास की सच्चाई है कि अंदाज़ में राज कपूर साहब, इंसानियत में देव साहब, मुग़ले-आज़म में पृथ्वीराज साहब और सौदाग़र में राज कुमार साहब पर आप बिलाशक़ बीस साबित हुए। अमिताभ बच्चन साहब के इस जुमले से इत्तेफाक़ कौन कमबख़्त नहीं रखेगा कि - "जो अभिनेता यह कहता है कि वह दिलीप कुमार साहब से प्रभावित नहीं रहा है, वह झूठ बोलता है"।

मुसाफ़िर में आपने एक गीत को अपनी आवाज़ दी थी - लागी नाहीं छूटे रामा चाहे जिया जाये... लता जी के साथ आपने यह गीत गाया था। जिसे पता न हो कि यह गीत आपने ख़ुद ही गाया है, वह अगर सुन ले तो शायद यही समझे कि किसी प्रशिक्षित और दक्ष गायक ने गाया है। फिर आपका वही इंटरव्यू, जिसमें आपने फ़रमाइश पर एक ग़ज़ल के कुछ शेर सुनाये थे। अक्सर सोचता रहा कि फिल्मी अभिनेताओं के साथ आत्ममुग्धता के क़िस्से जुड़े रहे हैं। लेकिन, बावजूद इस हुनर के आपने अपने स्टारडम का उपयोग गायकी के लिए नहीं किया। और, गिने-चुने मौकों पर ही अपनी आवाज़ गीतों को दी। आपके संयम और कला के प्रति समर्पण को प्रणाम।

यूं कहता रहूं तो जाने क्या-क्या कहता चलूं लेकिन यह ज़रूर कहना चाहता हूं कि मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि मैं कभी आपसे मिला नहीं या हम एक-दूसरे से अजनबी रहे हैं। यही महसूस हुआ है कि आपके साथ बेहतरीन और बहुत वक़्त गुज़ारा है। उम्र में तो आप मेरे दादू के बराबर होंगे लेकिन कहीं ऐसा लगता रहा है कि आपके बचपन में मैं भी कहीं बच्चा था, आपकी जवानी में आपके साथ मैं जवान हुआ था और आपके सफ़र में कहीं-कहीं आपके साथ रहा।

उम्र बरसों में नहीं होती, आप जानते हैं। आप अमर हो चुके हैं, यह भी आप जानते हैं। सालगिरह की मुबारकबाद देता हूं आपको लेकिन दुख होता है कि एक अरसे से आपको काफ़ी तक़लीफ़ रही है। जैसे देने वाला उस सब की क़ीमत वसूल रहा है, जो आपको दिया उसने। इस पूरे मंज़र में वो ही ख़ुदगर्ज़ लगता है, क्यूंकि आप तो ख़ामोशी से वो क़ीमत भी अता कर रहे हैं। आपको कष्टों से मुक्ति मिले, यही दुआ है। जानता हूं सालगिरह पर इस तरह की दुआ देने का रिवाज नहीं है लेकिन क्या करूं, जो अज़ाब दे रहा है, उसे शर्मिंदा करना चाहता हूं। आप हमेशा थे, हैं और हमेशा रहेंगे। हम अपने बच्चों को बता रहे हैं कि आपने क्या क़रिश्मे किये। उनसे वादा लेकर ही जाएंगे हम कि वो भी अपने बच्चों को बताएं कि दिलीप कुमार होने के मआनी क्या होते हैं।

हमें और कई नस्लों को ख़ुशक़िस्मत होने का मौक़ा दिया आपने दिलीप साहब। तहेदिल से शुक्रिया। एक मेरे नाना थे, जो आपकी हर फिल्म देखने के लिए ट्रेन से तक़रीबन सौ मील का सफ़र करते थे, क्यूंकि उनके क़स्बे में उस वक़्त कोई सिनेमा हॉल नहीं था। नाना ने अपने बेटे यानी मेरे मामा का नाम दिलीप सिर्फ़ इसलिए रखा था क्यूंकि वो मोहम्मद युसूफ़ ख़ान को दिलीप कुमार के नाम से जानते थे और आपसे मुहब्बत करते थे। मेरे नाना ही नहीं, जाने कितने ऐसे दीवाने रहे आपके। शायद आपको कोई अंदाज़ा भी हो लेकिन इन दीवानों की संख्या और दीवानगी के पूरे हाल से तो आप ख़ुद भी वाकिफ़ नहीं होंगे।

आपके जादू में गिरफ़्तार मैं, आपके तमाम चाहने वालों की जानिब से आपको शुक्रिया भेज रहा हूं। जानता हूं यह बहुत बोरिंग और बेमानी लफ़्ज़ बन चुका है और इस लफ़्ज़ को मआनीख़ेज़ बनाने के लिए ही पहले इतना कुछ कहना लाज़िमी था। हमारी तरफ़ से एक सच्चा और एहसासों में पुरनम शुक्रिया क़ुबूल फ़रमाकर इनायत करें हम पर। ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद, दिलीप कुमार ज़िंदाबाद।

संबंधित लेख :

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें