सोमवार, अगस्त 21, 2017

समीक्षा

विमर्श नहीं, विचार देतीं कविताएं


समीक्षा - भवेश दिलशाद
कृति - दुर्दिनों की बारिश में
कवि - मणिमोहन मेहता
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इस कृति से पहले मणिमोहन जी के कवि से परिचय सोशल मीडिया के ज़रीये रहा है और गाहेबगाहे उनकी रचनाएं पढ़ता रहा हूं। उनके द्वारा किये गये अनुवाद भी कई स्थानों पर पढ़ने को मिलते रहते हैं। पिछले दिनों सतत साहित्यिक समूह धागा पर उनके द्वारा अनूदित कविताएं भी चर्चाधीन रही थीं लेकिन उस दिन मैं वहां दुर्भाग्यवश उपस्थित नहीं हो सका। उनके अनुवाद से मुताल्लिक कुछ बातें मैं मेहता जी से करना चाहता था, लेकिन ख़ैर फिर कभी सही। यहां इस काव्य संग्रह पर कुछ बातें संक्षेप में करने की चेष्टा करता हूं इस पुनर्निवेदन के साथ कि कविता की इस विधा में मेरा कोई ख़ास दख़ल नहीं है इसलिए बहुत से कथनों को मात्र मेरी जिज्ञासा ही समझा जाये न कि कोई दावा या बयान।

"दुर्दिनों की बारिश में" एक ऐसा कविता संग्रह है जिसकी अधिकतर कविताएं पठनीय हैं और इन अधिकतर में से अधिकतर पाठक को प्रभावित करने की सामर्थ्य भी रखती हैं। ये कविताएं पढ़कर शायद कई पाठकों को महसूस हो सकता है कि यह उनके जीवन की ही वह कोई बात है जो किसी हमाहमी या उथलपुथल में कहने से, सोचने से या महसूस करने से छूट गयी थी। इस स्तर पर ये कविताएं बहुत कामयाब नज़र आयीं मुझे कि संग्रह की लगभग सभी रचनाएं लगभग हर शब्द तक संप्रेषित होती हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि इनमें विचारों या भावों की गहनता न हो या किसी किस्म का सतही साहित्य हो, बल्कि इसका अर्थ यह है कि यह मंझे हुए रचनाकार की रचनाएं हैं जो अनुभवों की गूढ़ता को शब्दों के सारल्य में संप्रेषित कर सकता है।

अपनी कलम का भी / रखना पूरा ध्यान / कोई पूरी विनम्रता के साथ / बदल सकता है उसे / चाकू तलवार या खंजर में... "अपने बच्चों के लिए" शीर्षक कविता में कवि ने स्वयं यह चेतावनी दी है कि कलम को कलम का ही हक़ अदा करना चाहिए। यह पूरा संग्रह पढ़ते हुए कवि की भाषा को एक लेकर अनुभव होता है कि यह अधिकांश स्थानों पर परिष्कृत और एक शिष्ट व्यक्ति की ही भाषा है जिसमें क्रोध, प्रतिरोध, दुख, क्लेश और आर्तनाद सब कुछ व्यक्त हो पा रहा है। इन मनोभावों या विचारों को व्यक्त करने के लिए कवि ने हिंसक भाषा का प्रयोग न के बराबर ही किया है। यह भाषा के स्तर पर कवि की निजता का बोध कराता है। 

डंपिंग ग्राउंड, शिक्षक से, ज्ञानी, शरणार्थी शिविर, नवरात्रि, इतवार और तानाशाह, शायद, प्रेम कविताएं, एक लय... इस संग्रह से ये कुछ शीर्षक मैंने चुने हैं और इन्हें पढ़ने का आग्रह मैं हर पाठक से करना चाहूंगा। ये कविताएं आप हमेशा अपने साथ रख सकते हैं। ये कविताएं इस संग्रह से मेरी पसंदीदा भी हैं। कुछ बातें हैं जो मन में आती हैं इस संग्रह से गुज़रते हुए...

क्या वाकई समकालीन कविता के लिए विमर्श आमंत्रित करने वाला होना आवश्यक है? इस संग्रह की अधिकांश कविताएं पाठक को भाव या विचार स्तर पर आंदोलित करने का गुण रखती हैं बजाय इसके कोई विमर्श छेड़ें, कम से कम कोई नया विमर्श छेड़ने में तो इन कविताओं की कोई रुचि नहीं है।

आजकल की कविताओं के बारे में यह भी एक मान्यता हो चली है या धारणा बन गयी है कि विषय के अनुकूल भाषा का चयन किया जाये। प्रतिरोध या व्यंग्य की भाषा आजकल की कविताओं में बेहद उग्र या हिंसक नज़र आती है लेकिन इस संग्रह में जैसा मैंने पहले उल्लेख किया, ऐसा नहीं है।

इस संग्रह की तमाम कविताएं छंद मुक्त होने के बावजूद लयमुक्त नहीं हैं। ये एक सरस एवं गुनगुनाते हुए कवि की रचनाएं हैं जिनमें कवि अपनी लय तलाश पाता दिखता है और वह लय पाठक के साथ भी तादात्म्य स्थापित करती है। बात यह है कि छंद मुक्त होने के बावजूद कविता की एक लय हो सकती है तो होना चाहिए भी कि नहीं? यह कविता का गुण है या केवल एक लक्षण विशेष मात्र?

चूंकि मणिमोहन भाई अनुवाद कर्म में बेहद सक्रिय रहे हैं और लगातार इसलिए भी उन्होंने विश्व साहित्य का अध्ययन किया है। संभवतः इसी कारण से इस संग्रह को पढ़ते हुए मेरी एक जिज्ञासा रही कि मैं उनकी विश्व दृष्टि को समझ सकूं या उसे कहीं इस संग्रह में रेखांकित कर सकूं लेकिन दो पाठ में मुझे यह हासिल नहीं हुई। इसके लिए मैं इस पुस्तक का एक पाठ कम से कम और करूंगा। फिर भी नहीं समझा तो प्रश्न लेकर उपस्थित हो जाउंगा। फिलहाल, मणि भाई को बधाई और शुभकामनाएं।

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